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दो जून की रोटी @@@@@@

दो जून की रोटी 
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दो जून की रोटी के पाने  ,
देखो लोग फिरत हैं  ।
तरह-तरह के भेष धरत औ,
 स्वर्णिम जीव सरत है  ।

मात-पिता परिवार छोड़ ,
सारे जहां में घूमें ।
दो जून की रोटी के चाने ,
जमीं आसमां चूमे  ।

ऊंच नीच सब काम करत जन ,
मारा मारा फिरता। 
सत असत का भेद भूल कर ,
मानव मन से गिरता  ।

काली रातें जेठ दुपहरी ,
नहीं रोकतीं जन को  ।
दो जून रोटी के पाने ,
सदा झोंकता तन को  ।

अनजान भटकता फिरता है  ,
सारी संसारी में  ।
जीवन पूरा खपा देत है ,
दो जून की रोटी में  ।

स्वरचित व मौलिक 
डॉक्टर आर बी पटेल "अनजान"
 शिक्षक व साहित्यकार
आकाशवाणी, दूरदर्शन गीतकार 
 बजरंग नगर कॉलोनी
 छतरपुर ,मध्य प्रदेश।

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2 Comments

RISHITA

05-Jun-2024 02:07 PM

Amazing

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Gunjan Kamal

03-Jun-2024 08:25 AM

👏🏻👌🏻

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